आरबीआई (RBI) 2000 के नोटों को वापस लेने का ऐलान कर चुकी है. इसकी प्रक्रिया भी जारी है. आरबीआई की इस घोषणा के विपक्ष पीएम मोदी और उनकी सरकार की आलोचना कर रहा है, लेकिन अब जो जानकारी सामने निकलकर आ रही है, वो विपक्ष को चुप करा देगा. मिली जानकारी के अनुसार पीएम मोदी कभी भी 2000 के नोट को बाजार में लाने के लिए सहमत नहीं थे.
प्रधानमंत्री कार्यालय में उस समय तैनात प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2,000 रुपये के नोट के पक्ष में बिल्कुल नहीं थे क्योंकि उन्होंने कभी भी इसे गरीबों के नोट के रूप में नहीं माना था, लेकिन चूंकि नोटबंदी सीमित समय में की जानी थी, इसलिए उन्होंने इसके लिए अनिच्छा से अनुमति दे दी थी.
पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा ने आगे कहा कि पीएम मोदी ने इस नोट को बड़ा खतरा बताया था. उन्होंने कहा था कि इससे जमाखोरी बढ़ेगी. मिश्रा ने कहा कि आरबीआई के पास नोटों की छपाई के लिए उस वक्त उतनी प्रिंटिंग क्षमता नहीं थी कि वो नोटबंदी के समय बाजार की मांग को पूरा कर सके. इसके लिए 2000 के नोट लाने का फैसला किया गया, लेकिन पीएम इसके लिए राजी नहीं थे, लेकिन परिस्थितियों को देखते हुए उन्होंने इसकी अनुमति दे दी थी.
उन्होंने कहा- “… पीएम मोदी 2,000 रुपये के नोट के पक्ष में बिल्कुल नहीं थे. लेकिन, जैसा कि सीमित समय में किया जाना था, उन्होंने इसके लिए अनिच्छा से अनुमति दी … पीएम ने कभी भी 2000 रुपये के नोट को गरीबों का नोट नहीं माना. उन्हें पता था कि 2000 के नोट से जमाखोरी होगी.”
इस 2000 नोट वाले विवाद की कहानी 2016 से हुई, जब मोदी सरकार ने नोटबंद का ऐलान किया था. इस दौरान बाजार में मौजूद 500 और 1000 के नोट की वैधता खत्म कर दी गई. उसकी जगह पर नए 500 और 2000 के नोट लाए गए. उस समय भी विपक्ष ने इसे लेकर काफी हंगामा किया था. कहा था कि 2000 के नोट से जमाखोरी बढ़ेगी, खत्म नहीं होगी.