नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दाखिल हुई है. इसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति देश की प्रथम नागरिक हैं. संविधान के अनुच्छेद 79 के मुताबिक राष्ट्रपति संसद का भी अनिवार्य हिस्सा हैं. लोकसभा सचिवालय ने उनसे उद्घाटन न करवाने का जो फैसला लिया है, वह गलत है.
याचिकाकर्ता का नाम सी आर जयासुकिन है. पेशे से वकील जयासुकिन तमिलनाडु से हैं. वह लगातार जनहित याचिकाएं दाखिल करते रहते हैं. उनकी इस याचिका में कहा गया है कि देश के संवैधानिक प्रमुख होने के नाते राष्ट्रपति ही प्रधानमंत्री की नियुक्ति करते हैं. सभी बड़े फैसले भी राष्ट्रपति के नाम पर लिए जाते हैं.
याचिका में क्या दलीलें दी गईं है?
याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 85 के तहत राष्ट्रपति ही संसद का सत्र बुलाते हैं. अनुच्छेद 87 के तहत उनका संसद में अभिभाषण होता है, जिसमें वह दोनों सदनों को संबोधित करते हैं. संसद से पारित सभी विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही कानून बनते हैं. इसलिए, राष्ट्रपति से ही संसद के नए भवन का उद्घाटन करवाया जाना चाहिए.
याचिकाकर्ता ने कहा है कि 18 मई को लोकसभा सचिवालय ने संसद भवन के उद्घाटन के लिए जो निमंत्रण पत्र जारी किया है, वह असंवैधानिक है. सुप्रीम कोर्ट यह निर्देश दे कि उद्घाटन राष्ट्रपति से करवाया जाए.
ध्यान रहे कि नए भवन का उद्घाटन 28 मई को होना है. सुप्रीम कोर्ट में इस समय अवकाशकालीन बेंच बैठ रही है. ऐसे में याचिकाकर्ता कल यानी 26 मई को वहां अपनी बात रखने की कोशिश कर सकते है. लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि इस तरह के कार्यकारी निर्णय में सुप्रीम कोर्ट दखल दे.
गुरुवार 25 मई को की गई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने पीएम मोदी की आलोचना करते हुए कहा, एक व्यक्ति के अहंकार और खुद का प्रचार करने की इच्छा ने देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपित के हाथों से संसद का उद्घाटन किए जाने का गौरव छीन लिया.