सद्गुरु ईशा फाउंडेशन को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ ईशा फाउंडेशन सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. दरअसल मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी क्रिमिनल केस की जानकारी देने का निर्देश पुलिस को दिया था. हाईकोर्ट ने यह आदेश एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस. कामराज की ओर से हाईकोर्ट में दायर हेबियस कॉर्प्स याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए थे.
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उसकी दो पढ़ी-लिखी बेटियों का ब्रेनवॉश कर ईशा फाउंडेशन के योग केंद्र में रखा गया है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाएंगे. मामले पर टिप्पणी करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आप ऐसे संस्थान में पुलिसकर्मियों की फौज नहीं भेज सकते. हालांकि चीफ जस्टिस ने कहा कि वो चैंबर में ऑनलाइन मौजूद दोनों महिलाओं से बात करेंगे और उसके बाद आदेश पढ़ेंगे.
क्या है मामला?
एक रिटायर प्रोफेसर डॉ एस कामराज ने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियों, गीता कामराज और लता कामराज को उनकी इच्छा के खिलाफ फाउंडेशन में रखा जा रहा है. कामराज ने दावा किया कि संगठन ने उनकी बेटियों का ब्रेनवॉश किया और उन्हें मठवासी जीवन जीने के लिए मजबूर किया.
मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने कोयंबटूर ग्रामीण पुलिस को जांच करने और रिपोर्ट करने का आदेश दिया. साथ ही ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज किसी भी आपराधिक मामले की डिटेल भी मांगी थी.जानकारी के मुताबिक डॉ एस कामराज की बड़ी बेटी, गीता, यूके की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से मेक्ट्रोनिक्स में पोस्ट ग्रेजुएट हैं. 2008 में उनका तलाक हुआ था. तलाक के बाद उन्होंने ईशा फाउंडेशन में योग क्लास में शामिल होना शुरू किया.
वहीं उनकी छोटी बहन, लता एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं. वह भी उनके साथ-साथ सेंटर जाने लगीं और फिर उन्होंने हमेशा ही केंद्र में रहने का फैसला किया. याचिका के अनुसार फाउंडेशन ने बहनों को कथित तौर पर खाना और दवाइयां दीं. इन दवाओं का सेवन करने से उनकी सोचने समझने की ताकत कमजोर हो गईं. इसके चलते उन्हें अपने परिवार के साथ अपने संबंध तोड़ने पड़े.