आज एक ऐसा पर्व है जो धार्मिक के साथ गुरु-शिष्य के पवित्र बंधन में भी बंधा हुआ है. गुरु-शिष्य के बीच एक ऐसा रिश्ता जो जीवन के आखिरी समय तक भी बना रहता है. इसके साथ गुरु का ज्ञान शिष्य के लिए हर परिस्थितियों में आगे की राह प्रशस्त करता है. शिष्य चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए लेकिन गुरु की प्रेरणा और आशीर्वाद हमेशा बना रहता है. हम बात कर रहे हैं ‘गुरु पूर्णिमा’ की. आज यह पर्व पूरे देश भर में धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. भारतीय संस्कृति में गुरु को बहुत ऊंचा दर्जा दिया गया है.
आज के दिन शिष्य गुरुओं का पूजन करते हैं. आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है. सुबह से ही सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप आदि साइट्स पर मैसेज का आदान-प्रदान हो रहा है. गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वर:. गुरु: साक्षात् पर ब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नम: अर्थात् गुरु ही ब्रह्मा जी का स्वरूप है और गुरु ही विष्णु है. गुरु ही देव महेश्वर है और गुरु ही साक्षात् परम ब्रह्म है, इसलिए गुरु को मेरा बार बार नमन है. भारत में प्राचीनकाल से ही गुरु और शिष्य परंपरा का प्रचलन रहा है. वेद और पुराणों में गुरु की महिमा का वर्णन मिलता है. प्रथम गुरु शिव, दूसरे दत्तात्रेय थे. श्रीराम और श्रीकृष्ण ने गुरु की शरण में रहकर ही ज्ञान और शक्ति को प्राप्त किया था. गुरु शब्द का अर्थ होता है, ‘अंधकार को हटाना’ इसलिए गुरु वो होता है जो अज्ञान को दूर करके, लोगों के जीवन में ज्ञान का संचार करता है. व्यक्ति के जीवन में मोक्ष प्राप्ति और जीवन के हर कठिन मार्ग पर दिशा निर्देश देने के लिए गुरु का साथ बहुत महत्वपूर्ण होता है. गुरु पूर्णिमा के दिन लोग गंगा नदी या किसी अन्य पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और उसके बाद जरूरत मंद लोगों को दान देते हैं.
महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास के जन्मदिवस पर मनाई जाती है गुरु पूर्णिमा
महाभारत के रचयिता और चार वेदों के व्याख्याता महर्षि वेदव्यास के जन्म दिवस पर गुरु पूर्णिमा का पवित्र पर्व मनाया जाता है. वेदव्यास जी आदिगुरु हैं. सभी पुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास को माना जाता है. इन्होंने वेदों को विभाजित किया है, जिसके कारण इनका नाम वेदव्यास पड़ा था. आषाढ़ माह की पूर्णिमा पर महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं. इस दिन से ऋतु परिवर्तन भी होता है. शिष्य अपने गुरु की विशेष पूजा करते हैं. लोग अपने गुरु को यथाशक्ति दक्षिणा, पुष्प, वस्त्र आदि भेंट करते हैं. शिष्य अपने सारे अवगुणों का त्याग भी करते हैं.
वहीं गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम चरित मानस और हनुमान चालीसा के प्रारंभ में ही गुरु वंदना की है. उन्होंने कहा है कि अगर किसी का गुरु नहीं है तो वह हनुमान जी को अपना गुरु बना सकता है. ईश्वर का साक्षात्कार बिना गुरुकृपा के होना कठिन है. हनुमान जी के सामने पवित्र भाव रखते हुए उन्हें अपना गुरु बनाया जा सकता है. एकमात्र हनुमान जी ही हैं जिनकी कृपा हम गुरु की तरह प्राप्त कर सकते हैं. तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा का शुभारंभ ही गुरु के चरणों में नमन करते हुए किया है. आज गुरु पूर्णिमा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके बधाई दी है. पीएम मोदी ने ट्वीट में लिखा कि गुरु पुर्णिमा की बधाई। यह उन सभी अनुकरणीय गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है, जिन्होंने हमें प्रेरित किया, हमें मार्ग दिखाया और हमें जीवन के बारे में इतना कुछ सिखाया. हमारा समाज सीखने और ज्ञान अर्जित करने को अत्यधिक महत्व देता है. कामना करता हूं कि हमारे गुरुओं का आशीर्वाद भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाएं.
–शंभू नाथ गौतम