इसरो के PSLV-C59/PROBA-3 की लॉन्चिंग टली, क्या है प्रोबा-3 मिशन!

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PSLV-C59/PROBA-3 की लॉन्चिंग को लेकर भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो (ISRO) ने आज यानी बुधवार को पूरी तैयारियां कर ली थीं. वैज्ञानिक मिशन की सफलता को लेकर काफी उत्साहित थे, लेकिन आखिरी समय में ऐसा क्या हुआ कि इसरो में हड़कंप मच गया. इसरो ने PSLV-C59/PROBA-3 की लॉन्चिंग कल तक के लिए टाल दी है. इस बात की जानकारी खुद भारतीय स्पेस एजेंसी ने दी है.

भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर प्रोबा-3 मिशन को री-शिड्यूल किए जाने को लेकर पोस्ट किया. इसरो ने बताया, ‘प्रोबा-3 एयरक्राफ्ट में खामियां पाई गई हैं, जिसके कारण पीएसएलवी-सी59/प्रोबा-3 का प्रक्षेपण कल 16:12 बजे किया जाएगा.’

आखिरी समय में टाली गई लॉन्चिंग
अब वैज्ञानिक पूरी एकजुटता के साथ प्रोबा-3 स्पेसक्राफ्ट में आई खामी को ठीक करने में जुटी हुई है. ताकि कल (गुरुवार) जब इसे लॉन्च किया जाए, तो प्रेक्षपण के सफल होने की गारंटी 100% रहे. हालांकि इसरो ने प्रोबा-3 मिशन की लॉन्चिंग को लेकर पूरी तैयारी कर ली थीं. इसको लेकर ISRO एक्स पर जानकारी भी पोस्ट कर रही थी.

क्या है प्रोबा-3 मिशन?
प्रोबा-3 मिशन कई देशों के वैज्ञानिकों की एक साथ मिलकर की कड़ी मेहनत का नतीजा है. प्रोबा (PROBA) का मतलब प्रोजेक्ट फॉर ऑनबोर्ड ऑटोनॉमी है. यह एक लैटिन वर्ड है, जिसका अर्थ ‘आओ कोशिश करें’ है. इस मिशन में एक नहीं बल्कि दो उपग्रह लॉन्च किए जाएंगे. ये दुनिया पहला Precision Formation Flying mission है यानी इसमें सैटेलाइट एक खास स्थिति में उड़ान भरेंगे. इस मिशन में स्पेन, पोलैंड, बेल्जियम, इटली, और स्वीट्जरलैंड के वैज्ञानिक शामिल है. प्रोबा-3 मिशन अगले दो सालों तक संचालित होगा. बता दें कि इससे पहले इसरो प्रोबा-1 और प्रोबा-2 की लॉन्चिंग में बड़ी भूमिका निभा चुका है.

प्रोबा-3 मिशन का मकसद
सूर्य के वायुमंडल की बाहरी परत यानी कोरोना का अध्ययन करना है. कोरोना के बारे में कहा जाता है कि ये सूर्य की सतह की तुलना में कई गुना अधिक गर्म है. इससे निकलने वाली सौर हवाएं उपग्रहों और पृथ्वी को प्रभावित करती है. हालांकि, इंसानों को ये तभी दिखाई देती है, जब पूर्ण सूर्यग्रहण होता है.

कैसे काम करेंगे सैटेलाइट
प्रोबा-3 मिशन में लॉन्च सैटेलाइट आर्टिफिशियल सूर्यग्रहण बनाएंगे ताकि सूर्य के कोरोना का अध्ययन किया जा सके. इन जुड़वां सैटेलाइट में से एक पर कोरोनाग्राफ होगा जबकि दूसरे पर ऑल्टर होगा. इनमें एक सैटेलाइट सूर्य को छिपाएगा जबकि दूसरा सैटेलाइट सूर्य के कोरोना का निरीक्षण करेगा. ऐसा साल में 50 बार किया जाएगा और हर राउंड की अवधि 6 घंटे की होगी. इस तरह सूरज के उस हिस्से यानी कोरोना की स्टडी कर पाएंगे जो आसानी से नहीं दिखाता है और उसके बारे में ज्यादा कुछ पता भी नहीं है.

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