जिमी कार्टर के नाम पर क्यों हरियाणा का यह गांव! उनकी मां से है खास कनेक्शन

वाशिंगटन| रविवार को अमेरिका के 39वें राष्ट्रपति जिमी कार्टर का 100 साल की उम्र में निधन हो गया. वह सबसे लंबे वक्त तक जिंदा रहने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति थे. रविवार को जॉर्जिया के प्लेन्स स्थित अपने घर में अपने परिवार के बीच कार्टर ने अंतिम सांस ली. उनका भारत से एक अनोखा रिश्ता था. 1978 में भारत यात्रा के दौरान हरियाणा के एक गांव का नाम उनके सम्मान में ‘कार्टरपुरी’ रखा गया था. इस गांव का उनकी मां से खास कनेक्शन है.

जिमी कार्टर को भारत का दोस्त माना जाता था. अमेरिकी इतिहास में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले राष्ट्रपति थे. 1977 में आपातकाल हटने और जनता पार्टी की जीत के बाद भारत आने वाले वे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे. भारतीय संसद को संबोधित करते हुए कार्टर ने सत्तावादी शासन के खिलाफ आवाज उठाई थी और लोकतंत्र के लिए भारत की तारीफ की थी. 2 जनवरी 1978 को कार्टर ने कहा था, ‘भारत की मुश्किलें, जिन्हें हम अक्सर खुद भी महसूस करते हैं और जो विकासशील देशों की आम समस्याएं हैं, हमें आगे के कामों की याद दिलाती हैं. रास्ता सत्तावादी होने का नहीं है.’

संसद सदस्यों से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘लेकिन भारत की सफलताएं भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे इस थ्योरी को पूरी तरह से ख़ारिज कर देती हैं कि आर्थिक और सामाजिक प्रगति हासिल करने के लिए एक विकासशील देश को एक सत्तावादी या अधिनायकवादी सरकार को स्वीकार करना होगा और मानवीय भावना के स्वास्थ्य को होने वाले उस नुकसान को भी स्वीकार करना होगा जो इस तरह का शासन अपने साथ लाता है.’

कार्टर ने कहा, ‘क्या लोकतंत्र महत्वपूर्ण है? क्या मानव स्वतंत्रता को सभी लोग महत्व देते हैं?… भारत ने अपनी दमदार आवाज में इसका जवाब हां में दिया है. एक ऐसी आवाज जो पूरी दुनिया ने सुनी है. पिछले मार्च में यहां कुछ महत्वपूर्ण हुआ था, इसलिए नहीं कि कोई खास पार्टी जीती या हारी बल्कि मुझे लगता है इसलिए क्योंकि धरती पर सबसे बड़े मतदाताओं ने स्वतंत्र और समझदारी से अपने नेताओं को चुना. इस लिहाज से लोकतंत्र खुद विजेता था.’

कार्टर सेंटर के मुताबिक, 3 जनवरी 1978 को जिमी कार्टर और उनकी पत्नी रोसालीन कार्टर ने नई दिल्ली से एक घंटे की दूरी पर स्थित दौलतपुर नसीराबाद गांव की यात्रा की थी. वे भारत आने वाले तीसरे अमेरिकी राष्ट्रपति थे और देश से व्यक्तिगत रूप से जुड़ाव रखने वाले एकमात्र राष्ट्रपति भी थे. दरअसल, उनकी मां लिलियन ने 1960 के दशक के अंत में पीस कॉर्प्स के साथ एक हेल्थ वर्कर यानी स्वास्थ्य स्वयंसेवक के रूप में यहां काम किया था.

कार्टर सेंटर के मुताबिक, यह दौरा इतना सफल रहा कि इसके तुरंत बाद गांव वालों ने इस जगह का नाम बदलकर ‘कार्टरपुरी’ कर दिया. कार्टरपुरी हरियाणा में पड़ता है. कार्टर की इस यात्रा ने एक स्थायी छाप छोड़ी. 2002 में जब जिमी कार्टर को नोबेल शांति पुरस्कार मिला, तो गांव में उत्सव का माहौल था. कार्टरपुरी में 3 जनवरी को आज भी छुट्टी मनाई जाती है. इस यात्रा ने एक स्थायी साझेदारी की नींव रखी, जिससे दोनों देशों को बहुत फायदा हुआ है.

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