भारत में तीन भाषा सूत्र (Three-Language Formula) की अवधारणा, जिसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 1968 में पेश किया गया था, का उद्देश्य छात्रों को हिंदी, अंग्रेजी और एक आधुनिक भारतीय भाषा (विशेष रूप से दक्षिणी भाषा) सिखाना था। यह नीति देश की भाषाई विविधता को बढ़ावा देने और एकता को सुदृढ़ करने के लिए बनाई गई थी।
हालांकि, वर्तमान में यह देखा गया है कि कई हिंदी भाषी राज्यों में इस सूत्र का पालन नहीं किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में केवल तमिल और अंग्रेजी का ही शिक्षण होता है, जबकि हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाने का विरोध किया जाता है। यहां तक कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में हिंदी को अनिवार्य करने का प्रस्ताव भी भारी विरोध के बाद वापस लेना पड़ा था।
इस प्रकार, हिंदी भाषी राज्यों में दक्षिणी भाषाओं के अध्ययन को लेकर उदासीनता और गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी के प्रति अनिच्छा के बीच एक विडंबना उत्पन्न हो गई है। यह भाषाई असंतुलन राष्ट्रीय एकता और विविधता के सिद्धांतों के साथ मेल नहीं खाता, जिससे नीति की प्रभावशीलता पर प्रश्नचिन्ह उठता है।