लोकतंत्र के महापर्व पर जनता के मुद्दों की बातचीत न करने से मतदाता भी मौन रह गया। महंगाई, बेरोजगारी, सड़क, बिजली, और पानी जैसी मूलभूत समस्याओं पर ध्यान न देने से चुनावी महापर्व पर असर हुआ। सीमांत जिले में लोगों ने हवाई सेवा, सड़क कनेक्टिविटी, और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी को चुनाव बहिष्कार की चेतावनी देकर अपनी आवाज़ बुलंद की।
मतदाता घर से निकलने के बजाय अपना संदेश चुपचाप दिया, और बूथ तक पहुँचने का प्रयास भी नहीं किया। कुमाऊं की दोनों संसदीय सीटों पर 2019 के मुकाबले वोटिंग प्रतिशत में गिरावट दिखी है। प्रदेश के छह दिग्गज नेताओं तक के विधानसभा क्षेत्रों में मत फीसदी बढ़ने के बजाय कम हो गया है, जिससे चुनावी महौल में एक नई जटिलता उत्पन्न हो रही है।
हल्द्वानी शहर में सड़कों की सुनसानता तक बढ़ गई थी, जो एक अजीब मंज़र प्रस्तुत कर रही थी, कुमाऊं में वोटिंग प्रतिशत को बढ़ाने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ही ने हर संभव प्रयास किए। सरकारी मशीनरी भी इस मुकाबले में सक्रिय भूमिका निभाई, लेकिन इसके बावजूद राजनीतिक विचारधारा के प्रति लोगों की उत्सुकता में कमी आई।
बात करे पार्टियों के स्टार प्रचारकों की तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक बीजेपी ने अपने सभाओं में जीत की शोरगुल की। वहीं, कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी और सचिन पायलट को चुनावी सभाओं के लिए बुलाया गया, लेकिन उन्हें दिग्गज स्थानीय मतदाताओं में धमाकेदार रिस्पॉन्स नहीं मिला।