जयंती पर याद आए हिमालय पुत्र: स्वतंत्रता सेनानी के साथ राजनीति के भी महारथी थे बहुगुणा, जानिए कैसा रहा इनका सियासी सफर

आज एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष की चर्चा करेंगे जिन्होंने कठिन संघर्ष और काबिलियत के बल पर अपना मुकाम बनाया. वे अपनी जनता के लिए हमेशा जन समस्याओं के लिए सड़कों पर जूझते रहे. मुख्यमंत्री रहे हो या वे केंद्रीय मंत्री उनका जनता से मिलने का अंदाज हमेशा जमीनी रहा. वे आए दिन लोगों से लुंगी और बनियान पहनकर ही मिल लेते थे. मुख्यमंत्री रहते हुए हर सुबह उनसे मिलने सैकड़ों लोग आते थे लेकिन वह सभी से सेविंग (दाढ़ी) बनाते-बनाते ही पूरी बात कर लेते. पहाड़ के एक छोटे गांव से निकलकर देश के कुशल राजनेताओं की श्रेणी में शुमार हुए. इंदिरा गांधी भी इनकी नेतृत्व क्षमता की कायल थी. छात्र राजनीति से करियर शुरू करने वाले ये उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री भी रहे.

हम बात कर रहे हैं हिमालय पुत्र उपाधि से सम्मानित और राजनीति जगत की सभी विधाओं में महारत हासिल करने वाले हेमवती नंदन बहुगुणा की. आज बहुगुणा जी की जयंती है. इस मौके पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ट्वीट करते हुए लिखा कि लोकतांत्रिक मूल्यों के धनी, दूरदर्शी राजनेता, महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हिमालय पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा जी की जयंती पर शत्-शत् नमन. आइए जानते हैं स्वतंत्रता सेनानी और राजनीति के सभी दांवपेंच में माहिर रहे हेमवती नंदन बहुगुणा के बारे में. 25 अप्रैल 1919 को हेमवती नंदन बहुगुणा का पौड़ी गढ़वाल के बुघाणी गांव में जन्म हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा गढ़वाल में हुई. उसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद (अब प्रयागराज) चले गए. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा ग्रहण की और छात्रसंघ अध्यक्ष रहे. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ प्रयागराज तत्कालीन इलाहाबाद में छात्र एवं युवाओं को लेकर बहुत बड़ा आंदोलन किया. इस आंदोलन में छात्र एवं युवा खुलकर अंग्रेजों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए.

ब्रिटिश सरकार ने उन पर पांच हजार रुपये का इनाम घोषित कर रखा था. उनके गिरफ्तार होने पर उन्हें कई साल दिल्ली व उत्तर प्रदेश के जेलों में रखा गया. स्वतंत्रता के बाद देश के पहले चुनाव 1952 में वे इलाहाबाद की करछना विधानसभा सीट से विधायक चुने गए. उसके बाद लगातार वे राजनीति के शिखर पर आगे बढ़ते गए. दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, तीन बार लोकसभा सदस्य और एक बार केंद्रीय मंत्री रहे. पहली बार 8 नवंबर 1973 से 4 मार्च 1974 तक, दूसरी बार 5 मार्च 1974 से 29 नवंबर 1975 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. 1977 में केंद्रीय पेट्रोलियम, रसायन तथा उर्वरक मंत्री भी बने. वर्ष 1979 में वह केंद्रीय वित्त मंत्री बने. उन्हें कांग्रेस का चाणक्य भी कहा जाता था. उन्हें राजनीति में संगठन और जोड़तोड़ में महारत हासिल थी. भले ही उनकी पढ़ाई और राजनीति इलाहाबाद में रहकर चमकी लेकिन वह कभी भी पर्वतीय क्षेत्र को भुला नहीं सके. ‌हेमवती नंदन बहुगुणा ने उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र के समग्र विकास के लिए उन्होंने पर्वतीय विकास मंत्रालय बनाया. पर्वतीय क्षेत्रों में कार्यरत सभी विभाग इस मंत्रालय के अधीन कर दिए.

1984 के अमिताभ बच्चन से हार के बाद बहुगुणा का राजनीतिक करियर समाप्त हो गया

हेमवती नंदन बहुगुणा और कांग्रेस के बीच दरार पड़नी शुरू हो गई. इसकी शुरुआत हुई इंदिरा गांधी के 1975 में देश में लगाए गए आपातकाल (इमरजेंसी) से। बहुगुणा उस दौरान कांग्रेस की नीतियों का विरोध करने लगे. फिर जब 1977 में लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई तो बहुगुणा ने पहली बार कांग्रेस से बगावत की. उसके बाद हेमवती नंदन बहुगुणा ने पूर्व रक्षा मंत्री जगजीवन राम के साथ मिलकर कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी पार्टी बनाई. उस चुनाव में इस दल को 28 सीटें मिली, जिसके बाद इस पार्टी का जनता पार्टी में विलय हो गया. 1980 में जनता पार्टी में बिखराव होने के बाद में चुनाव से ठीक पहले बहुगुणा कांग्रेस में फिर शामिल हो गए. इस चुनाव में बहुगुणा गढ़वाल से जीते, लेकिन उनको कैबिनेट में जगह नहीं मिली. उन्होंने कांग्रेस और लोकसभा की सदस्यता दोनों छोड़ दी. फिर गढ़वाल सीट पर 1982 में हुए उपचुनाव में बहुगुणा लोकसभा का चुनाव निर्दलीय ही लड़कर जीत गए. यह चुनाव तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की प्रतिष्ठा से जुड़ गया था. उन्होंने हेमवती को हराने की तमाम कोशिशें की लेकिन कांग्रेस चुनाव जीत नहीं पाई. इस चुनाव के नतीजे की पूरे देश में चर्चा रही.

उसके कुछ समय बाद ही बहुगुणा लोकदल में शामिल हो गए. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी ने कांग्रेस की टिकट पर अमिताभ बच्चन को इलाहाबाद से चुनाव मैदान में उतारा. उनके सामने हेमवती नंदन बहुगुणा लोकदल की टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे. बॉलीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने हेमवती नंदन बहुगुणा को 1 लाख 87 हजार वोटों से हरा दिया था. चुनाव हारने के बाद वह भारी मन से बोले, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मेरे युग की राजनीति का अंत हो गया है. जिसके बाद बहुगुणा ने राजनीति से सन्यास ही ले लिया. लेकिन इलाहाबाद में मिली अमिताभ बच्चन से हार के सदमे से वे अपने आखिरी समय तक उभर नहीं सके. 17 मार्च 1989 को बाईपास सर्जरी फेल होने के कारण उनका निधन हो गया था. हेमवती नंदन बहुगुणा का भले ही पूरा सियासी सफर इलाहाबाद के इर्द-गिर्द रहा लेकिन वह कभी भी अपनी संस्कृति और पर्वतीय क्षेत्र को भुला नहीं सके. उन्हें हिमालय पुत्र की उपाधि से सम्मानित किया गया. स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा के पुत्र विजय बहुगुणा जो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रहे हैं और उनकी पुत्री रीता बहुगुणा जोशी जो वर्तमान में प्रयागराज से भाजपा की सांसद हैं. उत्तराखंड में गढ़वाल विश्वविद्यालय भी हेमवती नंदन बहुगुणा के नाम से जाना जाता है.

–शंभू नाथ गौतम

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