अल्मोड़ा: एएसआई को रामगंगा नदी के तट पर एक बहुत पुराना शहर दबे होने की उम्मीद, पता लगाने की कवायद जल्द

अल्मोड़ा| भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में रामगंगा नदी के तट पर स्थित गेवाड घाटी में खुदाई की संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी है. एएसआई को भरोसा है कि गेवाड घाटी की मिट्टी के नीचे एक बहुत पुराना शहर दबा हो सकता है. एक अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक एएसआई के अधिकारियों ने कहा कि एएसआई विशेषज्ञों की एक टीम पहले ही घाटी का सर्वेक्षण कर चुकी है और खोई हुई बस्ती का पता लगाने की कवायद जल्द ही शुरू हो सकती है. एएसआई ने बताया कि इस इलाके के बारे में सर्वेक्षण रिपोर्ट काफी ठोस है.

एएसआई ने कहा कि चौखुटिया इलाके के तहत आने वाली घाटी के आगे के अध्ययन के लिए एक उन्नत सर्वेक्षण चल रहा है. खुदाई के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है. एएसआई के एक अधिकारी ने कहा कि रामगंगा नदी के साथ 10 किमी तक फैले इस इलाके में समतल जमीन है. जिसमें 9वीं और 10वीं शताब्दी के कई मंदिर हैं. इनको कत्यूरी शासकों ने बनावाया था. सदियों पुराने मंदिरों के समूह की मौजूदगी यह दिखाती है कि मंदिरों के बनने से पहले भी वहां कोई सभ्यता रही होगी.”

एएसआई को हाल ही में कई छोटे मंदिर मिले हैं, जिनकी ऊंचाई एक से दो फीट है. इससे पहले भी 1990 के दशक में उस इलाके में एक सर्वेक्षण किया गया था. गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग ने 9वीं शताब्दी में बने गणेश के एक मंदिर और नाथ संप्रदाय के सात अन्य मंदिरों का पता लगाया था. जिससे पता चलता है कि उस इलाके में मानव निवास मौजूद था. 1993 में हुए इस सर्वे में हिस्सा लेने वाली टीम को खुदाई के दौरान माध्यम आकार की कब्रें और बड़े जार मिले, जिनमें मृतकों के अवशेष रखे गए थे.

सर्वे टीम को चित्रित मिट्टी के बर्तन और कटोरे भी मिले. ये मेरठ के हस्तिनापुर और बरेली के अहिच्छत्र में गंगा के दोआब में पाए जाने वाले मिट्टी के बर्तनों के समान हैं, जो पहली-पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के हैं. हालांकि उस समय वहां कोई मानव बस्ती नहीं मिली. मगर सर्वे के नतीजों से संकेत मिलता है कि एक खोया हुआ शहर खुद को खोजे जाने का इंतजार कर रहा है. यह एएसआई के लिए एक बड़ी सफलता हो सकती है. विशेष रूप से हाल ही में उसी इलाके में एक 1.2 मीटर ऊंचा और लगभग 2 फीट व्यास का विशाल शिवलिंग मिला है. पुरातत्वविदों के अनुमान के मुताबिक दुर्लभ शिवलिंग 9वीं शताब्दी का है और यह कत्यूरी शासकों के मंदिरों में से एक का था, जो बाद में गायब हो गया.

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